Rajani katare

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बंधन जन्मों का भाग -- 10

             


 "बंधन जन्मों का" भाग- 10

पिछला भाग:--


नोकरी करना और फिर बच्चों की भी देखभाल... उनकी अच्छे से परवरिश की जिम्मेदारी भी तो 
तुझ पर ही आ गयी.... बहुत बड़ी ज़िम्मेदारियां 
आ गयीं हैं तुझ पर.....
अब आगे:--
हाँ बाबू जी ये तो है पर फिर भी मैं कर लूंगी...
कोशिश करुंगी सारी जिम्मेदारियां अच्छे से
निभा पाऊँ.....
बाबू जी अब मैं रसोई में जाती हूँ.... आपके वो
अजनबी दोस्त भी तो आने वाले हैं.... जल्दी से तैयारी शुरू करु़ं... आप आज बच्चों का गृहकार्य भर करवा दीजिए......
हाँ बेटा मैं बच्चों का गृहकार्य करवा देता हूँ....
विमला रसोई में जाकर देखती है क्या बनाऊँ...?
कुछ खास सब्जी भी नहीं है...समझ नहीं आ रहा क्या बनाऊँ....चलो कोई नहीं बाद में देखती हूँ...
सबसे पहले जीरा चावल बना लेती हूँ और आटा सान कर रख देती हूँ......

अब सोचती हूँ!! स्पेशल सब्जी क्या बनाऊं.... 
एक काम करती हूँ...आलू तो हैं सो दम आलू 
की सब्जी बना देती हूँ...अब मीठे में क्या बनाऊं!!
दूध भी तो नहीं है इतना!!  खीर ही बना देती....
खैर आटा तो है!! बढ़िया खजूर बना देती हूँ!!
घर की मिठाई तो सभी को अच्छी लगती है....
सब काम हो गया बस गर्मागर्म पूड़ी बना कर
देती जाऊँगी.......

बच्चों का होमवर्क भी हो गया!! अभी तक नहीं आए ये लोग.... तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है.... बाबू जी जाकर दरवाजा खोलते हैं....आइए आइएऽऽऽ
अजनबी दोस्त और उनकी पत्नी अंदर आइए...
बैठिए बैठिए......

विमला भी झट आकर नमस्कार करती है....
अरे तू तो मेरी बेटी जैसी है आजा आजा गले
से लग जा!! ये बूढ़ी तो तरस गयी बच्चों को 
देखने!! विदेश में जो बस गये हैं.....
चल चल रसोई में तेरी कुछ मदद कर दूं.....
न न न आंटी सब कर लिया मैंने...आप तो खाने
बैठो... मैं खाना लगा देती हूँ......

नहीं बिटिया इन लोगों को और बच्चों को परोस 
दे पहले... फिर अपन माँ बेटी बैठकर खाएंगे....
विमला सबकी थाली परोस कर... गर्म पूड़ियां बनाने लगती है....जब तक अजनबी दोस्त की पत्नी!! थाली में पूड़ी रख कर परोसने लगतीं
हैं.... माँ जी आप बैठिए मैं परोसती हूँ.....
नहीं नहीं मैं परोसने का काम सम्हालती हूँ....
तू बनाने का काम कर......

सबका खाना हो गया अब माँ जी और विमला
खाने बैठती हैं... दोनों मित्र बतियाने में लग जाते हैं... बच्चे खेलने में व्यस्त हो जाते हैं.....
हाँ तो बेटा बता आज पहला दिन स्कूल में कैसा
रहा... अच्छा तो लगा न....
हाँ सब ठीक रहा... धीरे-धीरे सब सीख जाऊँगी..
अभी थोड़ा डर सा लगता है... कुछ गलत न हो
जाए...अभी एकदम से कुछ समझ नहीं आता....
कोई बात नहीं सब सीख जायेगी...डर भी निकल
जाएगा... तेरे बाबा जो साथ हैं तेरे......

माँ जी आप बताईए कुछ अपने बारे में.....
क्या बताऊँ!! ऐसा कुछ है भी नहीं मेरी जिंदगी
में!! बस हम दो प्राणी हैं एक दूसरे के लिए.....
ऐसा क्यों बोल रहीं हैं माँ जी...?
बच्चे तो हैं!! भले ही विदेश में हैं तो क्या हुआ...
फोन पर तो बात हो जाती होगी.....
नहीं बेटा मेरा तो नसीब ही खोटा है..... 
क्या बताऊं.....
क्रमशः--

   कहानीकार-रजनी कटारे
         जबलपुर ( म.प्र.)

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